आखिरकार क्यों मारा इस बाघिन ने इतने बड़े मगरमच्छ को | True Story Of Ranthambore Tiger
आखिरकार क्यों मारा इस बाघिन ने इतने बड़े मगरमच्छ को True Story Of Ranthambore Tiger
आखिरकार क्यों मारा इस बाघिन ने इतने बड़े मगरमच्छ को: रणथंभौर नेशनल पार्क की रानी कहलाने वाली टाइगर इस मछली ये टाइगर इस ना केवल हिंदुस्तान में बल्कि पूरी दुनिया में मशहूर है एक चौदह फुट के मगरमच्छ को मारने के अलावा ऐसे बहुत से कारण हैं जिसके चलते मछली नाम की टाइगर इसको पूरी दुनिया में एक अलग ही पहचान मिली है ट्रैवल टूर
ऑपरेटरों के अनुसार हर साल मछली टाइगर इसकी वजह से लगभग 65 करोड़ रुपए का बिज़नेस होता था आपको जानकर हैरानी होगी कि मछली एक ऐसी टाइगर एस है जिसे लाइफटाइम अचीवमेंट अवॉर्ड भी मिल चुका है वैसे तो बंगाल टाइगर की जिंदगी लगभग 15 साल तक की होती है पर
मछली का जन्म नाइनटीन नाइंटी सेवन को हुआ था और उसकी मौत अठारह अगस्त दो हज़ार सोलह को हुई थी यानी मछली टाइगर इस 20 साल तक जिन्दा थी इस बाघिन ने उसकी पूरी जिंदगी में ग्यारह बाघों को जन्म दिया जिसमें से सात टाइगर एस और चार मेल टाइगर थे रणथम्भौर नेशनल
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पार्क में बाघों की संख्या बढ़ाने में मछली टाइगर इसका सबसे बड़ा योगदान रहा है मछली टाइगर अपने शावकों को बचाने के लिए खतरनाक मेल टाइगर्स और बाकी जानवरों से भी भिड़ जाती थी और उन बाकी जानवरों में से एक जानवर था एक चौदह फुट का क्रोकोडाइल तो चलिए दोस्तों जानते हैं कि
आखिरकार ऐसा कौन सा कारण था कि मछली टाइगर इसको एक चौदह फुट के बड़े क्रोकोडाइल को जान से मारना पड़ा आप में से बहुत से लोग जानते होंगे की रणथम्भौर नेशनल पार्क में मछली नाम की टाइगर इसने एक चौदह फुट के मगरमच्छ को जान से मार डाला था पर
बहुत कम लोग ये बात जानते हैं कि उस टाइगर्स ने आखिरकार उतने बड़े मगरमच्छ को मारा क्यों कोई भी टाइगर शिकार करने के मकसद से इतने बड़े मगरमच्छ को मारने की कोशीश बिलकुल भी नहीं करेगा टाइगर अकेले रहने वाले जीव हैं और वे इस बात को बहुत ही अच्छे से
जानते हैं की लड़ाई के दौरान अगर उनके शरीर के किसी भी हिस्से में अगर कोई गहरी चोट लग जाती है तो उनके लिए जंगल में अकेले जीना बहुत मुश्किल हो जाएगा फिर भी इन सबकी परवाह ना करते हुए उस मछली टाइगर्स ने ना केवल अपनी जान जोखिम में डालकर उस मगरमच्छ से लड़ाई की
बल्कि उस मगरमच्छ को जान से मार भी डाला दुनिया में अगर माँ और बच्चों के बीच में सबसे मजबूत रिश्ता कोई है तो वो है अपने बच्चों के प्रति एक बाघिन का वास्तव में हुआ ये था कि सत्ताईस जून दो हज़ार तीन को दोपहर के समय मछली टाइगर इसके बच्चे तालाब के किनारे खेल रहे थे
तभी एक चौदह फुट के मगरमच्छ ने तालाब से बाहर निकलकर टाइगर इसके गैरमौजूदगी में उसके बच्चों को अपना शिकार बनाने की कोशीश की इससे पहले कि वो क्रोकोडाइल उन बच्चों को नुकसान पहुंचा था उन बच्चों की माँ उनकी हिफाजत करने के लिए क्रोकोडाइल के सामने आ
चुकी थी जंगल में अगर कोई भी जानवर एक बाघिन के सामने उसके बच्चों को मारने की सोच भी लेता है तो वह बाघिन उस जानवर की आँखों में देखकर उसका इरादा जान लेती है पर यहाँ उस क्रोकोडाइल ने ना केवल उस बाघिन के बच्चों को मारने का सोचा था बल्कि उन बच्चों को मारने की
कोशीश भी की थी कहते हैं पानी में रहकर मगरमच्छ से बैर नहीं करते यहाँ तक कि पानी के बहार भी एक मगरमच्छ से लड़ना आसान नहीं होता एक बंगाल टाइगर का बाइट फोर्स एक हज़ार पचास पीएसआइ होता है वही एक डायल का बाईट फॉर से तीन हज़ार सात सौ पीएसआइ होता है इनका
जबड़ा इतना मजबूत होता है की हाथी जैसे जानवर भी इनसे पानी में बचकर ही रहते है पर चाहे क्रोकोडाइल कितना ही ताकतवर क्यों ना हो पर जब बात बच्चों पर आ जाती है तो एक बाघिन अपने बच्चों को बचाने के खातिर रख सीधे आर या पार वाली लड़ाई लड़ने की ठान लेती है
मछली टाइगर इसने अपने बच्चों को बचाने के लिए अपनी जान की परवाह किए बिना ही उस चौदह फुट के मगरमच्छ से भिड़ गयी दो घंटे तक चलने वाली इस खूनी लड़ाई में आखिरकार मछली टाइगर इसने उस मगरमच्छ को जान से मार डाला.. इस क्रोकोडाइल को मारने के बाद से ही टी
सोलह नाम की ये टाइगर है पूरी दुनिया में मशहूर हो गईं हालांकि इस लड़ाई में मछली टाइगर इस की जीत हो गई पर इस जीत की उसे सबसे बड़ी कीमत भी चुकानी पड़ी और वो सबसे बड़ी कीमत थी उसके तीन शिकारी दांत इस
लड़ाई के बाद रणथंभौर नेशनल पार्क में आने वाला हरेक सैलानी मछली टाइगर इसको जरूर देखना चाहता था दुनिया का कोई भी टाइगर जब आर या पार वाली लड़ाई लड़ने की ठान लेता है तब इस तरह की आर या पार वाली लड़ाई में ज्यादातर जीत एक टाइगर की ही होती है
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